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*भिलाई इस्पात संयंत्र को यूएनआईडीओ ने संचालन हेतु सौंपा डी-क्लोरीनेशन प्लांट*

by Aditya Kumar

भिलाई इस्पात संयंत्र को यूएनआईडीओ ने संचालन हेतु सौंपा डी-क्लोरीनेशन प्लांट

पीसीबी तेल विघटन संयंत्र एक अत्याधुनिक सुविधा है, जिसे संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (यूएनआईडीओ) और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के सहायता से स्थापित किया गया है। इसके निर्माण हेतु जमीन, भवन, क्रेन, बिजली, पानी आदि जैसे बुनियादी ढांचे भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा प्रदान किये गए हैं। विगत दिनों 12 जुलाई, 2024 को यूएनआईडीओ ने, डी-क्लोरीनेशन प्लांट के संचालन की जिम्मेदारी भिलाई इस्पात संयंत्र को सौंपी। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) इस परियोजना का राष्ट्रीय निष्पादन भागीदार है। भिलाई इस्पात संयंत्र (बीएसपी) इस परियोजना का प्रमुख लाभार्थी है।

डी-क्लोरीनेशन प्रक्रिया, उच्च स्तर और निम्न स्तर पीसीबी दूषित खनिज तेल से क्लोरीन परमाणुओं को निकालने के लिए स्थापित की गई है। यह प्रक्रिया सोडियम फैलाव समाधान का उपयोग करके रासायनिक प्रतिक्रिया द्वारा क्लोरीन परमाणुओं को निकालती है। यह प्रौद्योगिकी सफलतापूर्वक चालू हो गई है। दिसंबर 2023 में चालू हुआ पीसीबी विघटन संयंत्र, अब बीएसपी द्वारा तीनों पालियों में संचालित किया जाता है। परियोजना की सफलतापूर्वक पूर्णता के बाद, डी-क्लोरीनेशन प्लांट को 12 जुलाई, 2024 को भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा स्वतन्त्र रूप से संचालन हेतु ले लिया गया है।

इस अवसर पर भिलाई इस्पात संयंत्र के मुख्य महाप्रबंधक प्रभारी (सेवाएं) श्री प्रबीर कुमार सरकार, मुख्य महाप्रबंधक प्रभारी (अनुरक्षण व उपयोगिताएँ) श्री असित साहा, मुख्य महाप्रबंधक (पर्यावरण) श्री दिब्येंदुलाल मोइत्रा, मुख्य महाप्रबंधक (विदयुत) श्री टी के कृषणकुमार, मुख्य महाप्रबंधक (उपयोगिताएँ) श्री अनिल जोशी, महाप्रबंधक (प्लांट गराज) श्री बी डी बाबू, महाप्रबंधक (इंस्ट्रूमेंट) श्री मधु पिल्लई, महाप्रबंधक (पर्यावरण) श्री संजय कुमार, महाप्रबंधक (ई टी एल) श्री उमाशंकर बरवाल, वरिष्ठ प्रबंधक (पर्यावरण) श्री मोहित कुमार तथा यूएनआईडीओ के राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार श्री वाई पी रामदेव और सलाहकार श्री आर के अग्रवाल उपस्थित थे।

महाप्रबंधक (पर्यावरण) श्री संजय कुमार ने बताया की यह यात्रा आसान नहीं थी, क्योंकि यह प्रणाली बिजली के उतार-चढ़ाव के प्रति बहुत संवेदनशील है। ऐसे मामलों में अचानक थर्मल शॉक के कारण गैसकेट पंचर हो जाता है। पूरे सिस्टम को खोलकर क्षतिग्रस्त गैसकेट आदि को बदलना पड़ता है। इसी प्रकार पीसीबी तेल के घनत्व में परिवर्तन से ऑक्सीजन प्रवाह के विभिन्न मापदंडों को बदलने की आवश्यकता होती है। उन्होंने भरोसा दिलाया, कि जल्द ही प्लासकॉन प्रणाली को भी बीएसपी द्वारा स्वतन्त्र रूप से संचालन हेतु ले लिया जाएगा।

45 किलो प्रति घंटे की दर से पीसीबी तेल को नष्ट करने की क्षमता के साथ, पीसीबी विघटन संयंत्र ने कई उपलब्धि हासिल की है। मई महीने में ही संयंत्र ने 17.2 टन तेल को नष्ट कर 66% रेटेड क्षमता हासिल की। अब तक 91 टन पीसीबी तेल नष्ट किया जा चुका है और जल्द ही यह प्लांट 100 टन का मील का पत्थर हासिल कर लेगा।

उन्नत विदेशी मशीनरी से सुसज्जित, यह संयंत्र पुराने ट्रांसफार्मरों में आमतौर पर पाए जाने वाले हानिकारक पीसीबी तेल को निष्क्रिय करने के लिए ‘प्लासकॉन’ तकनीक का उपयोग करता है। पीसीबी तेल पर्यावरण के लिए हानिकारक है और इसका उत्पादन और उपयोग विश्व स्तर पर प्रतिबंधित है। प्लासकॉन तकनीक इस खतरनाक पदार्थ के सुरक्षित विघटन को सुनिश्चित करती है।

पॉली-क्लोरीनेटेड बाइफिनाइल (पीसीबी) एक कार्बनिक क्लोरीन यौगिक है, जिसे विद्युत ट्रांसफार्मर और जनरेटर में इन्सुलेशन तरल पदार्थ के रूप में और फ्लोरोसेंट लैंप बलास्ट, कॉर्क और कार्बनलेस कॉपी पेपर सहित कई औद्योगिक और उपभोक्ता अनुप्रयोगों में उपयोग के लिए व्यावसायिक रूप से निर्मित किया गया था।

1995 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की गवर्निंग काउंसिल ने पीसीबी पर वैश्विक कार्रवाई का आह्वान किया। जिसे “रासायनिक पदार्थों के रूप में परिभाषित किया गया, जो पर्यावरण में बने रहते हैं तथा खाद्य श्रृंखला के माध्यम से जैव-संचय करते हैं, और मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए प्रतिकूल प्रभाव डालने का जोखिम पैदा करते हैं”।

कई चर्चाओं के बाद, अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने 22-23 मई 2001 को स्टॉकहोम, स्वीडन में आयोजित पूर्णाधिकारी सम्मेलन में पीसीबी पर स्टॉकहोम सम्मेलन को अपनाया गया। यह सम्मेलन 17 मई 2004 को लागू हुआ। स्टॉकहोम सम्मेलन एक वैश्विक संधि है, जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को स्थायी जैविक प्रदूषकों (पीओपी) से बचाने के लिए है। भारत गणराज्य ने 14 मई, 2002 को पीओपी पर स्टॉकहोम सम्मेलन पर हस्ताक्षर किए।

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