रायपुर । राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके आज इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ द्वारा आजादी के 75वें वर्ष अमृत महोत्सव के अवसर पर ‘‘छत्तीसगढ़ की महिलाओं का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान’’ विषय पर आधारित ऑनलाईन व्याख्यान कार्यक्रम में शामिल हुई। उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई में समाज के सभी वर्गों ने बराबरी से भाग लिया, किन्तु पुरूष स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तुलना में महिला वीरांगनाओं के नाम उतनी प्रमुखता से दर्ज नहीं हो पाए। इस विषय पर प्रदेश के विश्वविद्यालयों को शोध करना चाहिए ताकि गुमनाम महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम भी इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में लिखे जाएं। हमारी वीरांगनाओं के योगदान को पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाना चाहिए। राज्यपाल ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने देश की आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर आजादी का अमृत महोत्सव मनाने की घोषणा की थी। इसी परिप्रेक्ष्य में इस महोत्सव का आयोजन पूरे देश भर में किया जा रहा है। इस अमृत महोत्सव की बदौलत ही पूरे देश में ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के योगदान को भी याद किया जा रहा है, जो गुमनाम रहे हैं।
राज्यपाल ने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सहित अनेक महानायकों के नेतृत्व में कई राष्ट्रीय आंदोलन किये गए, जिसमें पुरूषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी अपना योगदान दिया। हमारे राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में ऐसे कई महिलाएं हैं, जिन्होंने पारिवारिक भूमिका के साथ-साथ राष्ट्रवादी गतिविधियों में हिस्सेदारी की और वीरता एवं साहस का परिचय दिया। महात्मा गांधी स्वयं स्वीकार करते थे कि हमारी मां, बहनों के योगदान के बिना स्वतंत्रता का यह संघर्ष संभव नहीं होगा। शिक्षा का प्रसार तथा सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध आंदोलनों ने महिलाओं में जागृति पैदा की। देश में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन में छत्तीसगढ़ के पुरूष स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ ही, यहां की अनेकों महिलाओं ने भी बराबरी से हिस्सा लिया। इनमें छत्तीसगढ़ से डॉ. राधा बाई, श्रीमती रोहिणी बाई परगनिहा, श्रीमती फूलकूंवर बाई, श्रीमती बेला बाई, श्रीमती केकती बाई बघेल, श्रीमती रूखमणी बाई एवं श्रीमती दया बाई का नाम उल्लेखनीय है। इनके अलावा भी असंख्य महिलाओं ने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया, लेकिन उनके नाम इतिहास में कहीं दर्ज नहीं हुए।
सुश्री उइके ने विश्वविद्यालय को इतने अच्छे विषय पर व्याख्यान आयोजित करने के लिए विशेष रूप से बधाई दी और कहा कि वास्तव में राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं-पुरूषों ने बराबरी से भाग लिया था और महिलाओं ने परोक्ष रूप से भी इसमें योगदान दिया था, किन्तु हमारी सामाजिक संरचना के कारण महिलाएं पीछे रहीं और उनके योगदान का आंकलन इतिहासकारों ने सही तरीके से नहीं किया। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल प्रदेश है और यहां के आदिवासी क्षेत्रों में भी स्वतंत्रता के लिए अनेक आंदोलन/विद्रोह हुए, जिसमें सभी ने भाग लिया। इस विषय में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है। राज्यपाल ने कहा कि आज की नई पीढ़ी को अपनी विरासत, संस्कृति की जानकारी अवश्य रखनी चाहिए और हमारे गौरवशाली इतिहास से हमेशा प्रेरणा लेना चाहिए।
इस अवसर पर इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति श्रीमती मोक्षदा चन्द्राकर, छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी के पूर्व अध्यक्ष श्री शशांक शर्मा, विश्वविद्यालय के नाट्य विभाग के संचालक डॉ. योगेन्द्र चौबे ने भी अपना संबोधन दिया। इस वेबिनार में विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतिगण तथा छात्र-छात्राएं भी शामिल हुए।